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Wednesday, April 7, 2010

Apne ghar ko yaad karta hu.....

वही नीम का पेड़, वही मंजर !
वही मद्धम हवा , दूर एक जमीन बंजर !

उस पेड़ से झांकता , इठलाता , चमकता चाँद !
डालियों की ओट से निहारती, शर्माती दुल्हन सी चांदनी !

तन्हाईयों के घावों पर, खुशनुमा यादों के वार करती धीमी हवा की सुगंध !
अपनों  के बीच बिताये उन  लम्हों की तरह आती जाती,
लहरों के किनारे बैठा मै , अपने घर को याद करता हूँ !

रोशनी की चकाचौंध में,
बनावटी खुशनुमा माहौल की सौंध में ,
लाखों की  भीड़ में तनहा, बड़ी इमारतों के जंगल के बीच,
तीक्ष्ण रोशनी से भरी घूरती आँखों से सहमा मैं,
अपने घर को याद करता हूँ !

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